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महिला निःसंतानता क्या होती है? (What is Female Infertility in Hindi?)

जब महिला एवं पुरुष संतान प्राप्त का प्रयास लगभग एक वर्ष तक करते है और इसके परिणाम स्वरुप जब महिला को गर्भधारण नही हो पाता है तो इस तरह की समस्या को निःसंतानता कहा जाता है। निःसंतानता की समस्या महिला एवं पुरुष दोनों को हो सकती है। यह निःसंतानता आज कल लगभग 40 प्रतिशत महिलाओं ko prabhvit kar rahi में देखी जाती है। 

Indian council of medical research की रिपोर्ट के अनुसार आजकल बढ़ रही तेजी से बीमारियों के बीच निःसंतानता की बीमारी भी बहुत ही तेजी के साथ अपने पैर पसार रही है। आकड़ो की बात करें तो 2 करोड़ 80 लाख  ऐसे निःसंतान जोडे है तो आज भी निःसंतान का शिकार है।

 महिला निःसंतानता के लक्षण (Mahilao Me Banjhpan Ke Lakshan)

  1. महिला निःसंताना या महिला बांझपन का सबसे पहला और मुख्य लक्षण अनियमित माहवारी (इर्रेगुलर पीरियड्स)  को माना जाता है। प्रत्येक महिला का मासिक चक्र अलग-अलग होता है परंतु औषतन की बात की जाये तो गभग 28 दिनों का मासिक चक्र होता है। ऐसे में यदि आपका मासिक चक्र कभी कम या कभी ज्यादा हो जाता है तो यह लक्षण साफ दर्शाता है कि आप में निःसंतानता के लक्षण है। यह समस्या हार्मोन में असंतुलिन के कारण या फिर किसी अन्य बीमारी की वजह से हो सकती है जिसको इनफर्टिलिटी के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। 
  2. यदि किसी महिला को संबंध बनाते समय असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है तो यह भी निःसंतानता की समस्या का एक लक्षण है। यदि ऐसा होता है तो महिला की फर्टिलिटी गंभीर रुप से प्रभावित हो सकती है। इसके अतिरिक्त किसी स्त्री को फाइब्रॉयड्स की समस्या, वजाइनल इंफेक्शन की समस्या या फिर एन्डोमेट्रिऑसिस जैसी बीमारी है तो  निःसंतानता के रिस्क बढ़ने की अधिक संभावना हो जाती है। 
  3. माहवारी के दौरान हर किसी महिला को हल्का-फूल्का दर्द तो रहता ही है परंतु यदि किसी महिला को पीरियड्स के समय अत्यधिक दर्द हो और सामान्य ब्लीडिंग से ज्यादा रक्तस्राव हो तो महिला निःसंतानता काफी प्रभावित हो सकती है। 
  4. मासिक धर्म के दौरान आपके रक्त का रंग सामान्य दिनों की अपेक्षा अत्य़धिक काला जैसा दिखे तो इससे महिलाओं की फर्टिलिटी प्रभावित हो सकती है। 
  5. यदि आपका वजन जल्दी से बढ़ने लगे, चेहरे में मुहासें की समस्या आनें लगें तथा सेक्स के प्रति आपकी रुचि कम होनें लगे, आपके चेहरे में अनचाहें बाल चेहरे पर उगने लगे तो ऐसा हार्मोन असंतुलन के कारण होता है। यदि हार्मोन में असंतुलन हो जाता है तो भी यह निःसंतानता का एक लक्षण माना जाता है। 

 

महिला निःसंतानता के कारण (Mahila Bjapan Ke Karan)

निःसंतानता के बहुत सारे कारण हो सकते है जैसेकि आपकी जीवनशैली, आनुवांशिक वजह और इसके अलावा भी कई ऐसे कारण है जिसके बारें में हम विस्तार से आगे चर्चा करने वाले है लेकिन हमारे  आयुर्वेदिक कुछ ऐसे हर्बल ट्रीटमेंट है जिसके द्वारा निःसंतानता जैसी समस्या को दूर किया जाता है। 

यह सवाल उन हजारों हजार महिलाओं के जहन में जरूर आता होगा जो गर्भधारण करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश वो गर्भवती नहीं हो पा रही है । 

आज परिस्थिति यह है कि दुनिया में ऐसे हजारों-हजार निःसंतान दंपति है जो की निःसंतानता से जूझ रहें है और ये संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। वैसे तो इस समस्या का पता लगाना आसान काम नही है परंतु महिलाओं में कुछ ऐसी वजह हैं जो की आगे चल कर निःसंतानता का कारण बन बनती है इसलिए जरूरी है कि इस पर ध्यान दिया जाए । 

  1.  Fallopian Tubal Blockage ( नलो का बंद होना ) – जिन महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब बंद हो जाती है तो जिससे अंडे गर्भाशय तक अच्छी तरह से नही पहुच पाते है और शुक्राणुओं के साथ उनका निषेचन नही हो पाता है।
  2. Hydrosalpinx – हाइड्रोसल्पिनक्स की समस्या के कारण Inflammatory pelvic की बीमारी उत्पन्न हो जाती है। इस बीमारी के कारण ऊतकों में निशान तथा संक्रमण पैदा होने का खतरा बन जाता है। 
  3. Endometriosis – एंडोमेट्रियोसिस की परेशानी जिस महिलाओं को होती है उनकी ट्यूब में एंडोमेट्रियल टिशू जमा हो जाते है जिससे नली अवरुद्ध हो जाती है। 
  4. Ovulation: महिला बांझपन या महिला निःसंतानता का सबसे बड़ा और मुख्य कारण ओब्यूलेशन की समस्या को माना जाता है, क्योंकि 25 प्रतिशत महिलाएं निःसंतानता का शिकार इसी ओब्यूलेशन की समस्या का शिकार होती है। 
  5. PCOS/PCOD – यदि पीसीओएस या फिर पीसीओडी की समस्या से ग्रसित है तो इसके कारण महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज हो जाता है। 
  6. Ovarian Cyst – ओवरियन सिस्ट एक ऐसी समस्या है जो महिलाओं की ओवरी के अंदर थैली के आकार की संरचना बना लेती है जिसमें तरण द्रव्य भर जाता है। महिला के मासिक धर्म के दौरान यह द्रव्य ऊपर आने लगाता है जिसके कारण निःसंतानता की समस्या बनती है। 
  7. Low AMH – जिन महिलाओं का लो एएमएच सामान्य स्तर ( 2.20 – 6.80 ng/mL) कम होता है उन्हें  लो एएमएच के कारण इनफर्टिलिटी की समस्या होती है। 
  8. Fibroid – फाइब्रॉएड को गर्भाशय में रसौली के नाम से जानते है। इस बीमारी के कारण गर्भाशय तथा कोशिकाओं में काफी ज्यादा गाठें बनने लगती है। जिसके कारण जिसके कारण एक ट्यूमर बन जाता है। 
  9. निःसंतानता या बांझपन में उम्र का काफी बड़ा योगदान होता है। उम्र महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर काफी असर करती है। 30 वर्ष तक की आयु में महिलाओं की प्रजनन क्षमता अच्छी मानी जाती है। इसके बाद 35 वर्ष में यह 40% तक कम हो जाती है तथा 40 वर्ष पहुचने पर महिलाओं की प्रजनन क्षमता में काफी गिरावट आ जाती है। 
  10.  मासिक धर्म या माहवारी में यदि अनियमितता है तो यह निःसंतानता का कारण क्योंकि यदि मासिक चक्र बहुत अधिक लंबा या फिर बहुत ही छोटी अवधि का हो जाता है तो ऐसे में बांझपन होने का खतरा बना रहता है। 
  11. महिलाओं में पीसीओडी या पीसीओएस (PCOD/PCOS) उनके स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा माना जाता है। जिन महिलाओं को यह समस्या हो जाती है उनके शरीर के हार्मोन में असंतुलन हो जाता है, जिसकके कारण उनका मासिक धर्म और ओव्यूलेशन काफी हद तक प्रभावित हो जाते है। 
  12. कुछ महिलाओं में संक्रमण या फिर किसी सर्जरी के कारण उनके गर्भाशय में कुछ निशान जैसे पड़ जाते है जिसको मेडिकल की भाषा में स्कारिंग कहा जाता है। ऐसी स्थिति में गर्भपात जैसी समस्या होनी की संभावना बढ़ जाती है। 
  13. एन्डोमीट्रीओसिस की समस्या महिलाओं में होनी वाली एक ऐसी बीमारी है जिसके कारण मासिक धर्म के दौरान असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के कारण महिला की इनफर्टिलिटी प्रभावित होती है।
  14. आयुर्वेद के अनुसार निःसंतानता की समस्या में वजन बहुत ज्यादा मायने रखता है। क्योंकि जिन महिलाों का वजन या तो बहुत अधिक या फिर बहुत ही कम है ऐसे में गर्भपात या फिर गर्भावस्था की जटिलताएं बढ़ जाती है। 
  15. यदि कोई महिला क्लैमाइडिया एवं गोनोरिया जैसे बीमारी से पीड़ित होती है तो ऐसी महिला की यह अवस्था भी निःसंतानता का कारण हो सकती है। 
  16. महिलाओं के अंडों में प्रोटीन की कमी होने के कारण वह ठीक से परिपक्व नही हो पाते है जिसके कारण उनमें पीसीओएस जैसे समस्या बन जाती है। यदि यह अंडा ठीक से परिपक्व नही पो पाता है तो वह फैलोपियन ट्यूब में ठीक से गति नही कर सकता है जिसके परिणाम स्वरुप निषेचन की प्रक्रिया पूर्ण नही हो पाती है। 
  17. Infection – महिलाओं के गर्भाशय में किसी सर्जरी के कारण यदि कोई संकमण हो जाता है तो यह भी महिला निःसंतानता का कारण । 
  18. आयुर्वेद के अनुसार महिला निःसंतानता के मुख्य कारण वात दोष है। जो अंडों में खराबी उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार होता है और यह निःसंतानता का कारण बनता हैं। 
  19. वात दोष  मुख्य रूप से भय, तनाव, चिंता, आघात के कारण या कई बार ठंडे-सूखे और हल्के पदार्थों के सेवन करने से असंतुलित हो जाता हैं।
  20. पित्त दोष के परिणामस्वरुप फैलोपियन ट्यूब में रुकावट हो जाती है जो की डिम्ब या अंडे के परिवहन को बाधित करती है, जिसके कारण  निःसंतानता उत्पन्न होती है। 
  21.  महिलाओं में जब कफ दोष की अधिकता हो जाती है तो ऐसे में उनकी फैलोपियन ट्युब अवरुद्ध हो जाती है तथा गर्भाशय फाइब्रॉएड (रसौली) की भी बीमारी की संभावना बन जाती है। 

आयुर्वेद के अनुसार महिला निःसंतानता के प्रकार 

 वैदिक आयुर्वेदिक पद्धति के अनुसार महिलाओं में निःसंतानता को तीन भागों में बाँटा गया है। 

  1. बंध्य (Vandhya) – यह निःसंतानता की ऐसी अवस्था है जिसमे महिला पूर्ण रूप से निःसंतानता से ग्रसित होती है और जिसका इलाज संभव नही है। 
  2. अप्रजा (Apraja) – इस प्रकार की निःसंतानता में महिला के गर्भवती होने की संभावना होती है और इलाज के द्वारा इसका निदान संभव है।
  3.  सप्रजा (Sapraja)- इस शब्द का प्रयोग उन महिलाओं के लिए किया जाता है जो की एक बच्चे के जन्म के उपरांत निःसंतानता से ग्रस्त हो जाती हैं।

 

महिला निःसंतानता की जाँच

यदि एक महिला एक वर्ष से अधिक समय के बाद असुरक्षित सेक्स करने के बावजूद गर्भधारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे निःसंतानता का कारण जानने के लिए जाँच अवश्य करनी चाहिए। फर्टिलिटी टेस्ट निःसंतानता के कारण की पहचान करने और समय पर ठीक से इलाज करने में मदद करता है ताकि आप अपने माँ बनने के सपने को सच कर सकें।  

 महिला निःसंतानता की जाँचे –  (महिला बांझपन की जांच कैसे की जाती है?)

  1. अल्ट्रासाउंड के माध्यम से भी इनफर्टिलिटी की जांच की जा सकती है। इस जाँच के द्वारा बांझपन का पता लगाया जा सकता है। इसी जाँच को सोनोग्राफी के नाम से भी जानते है। अल्ट्रासाउंड की जाँच में पता लगा जाता है कि महिला के प्रजनन अंग किस तरह से कार्य कर रहे है। 
  2. FSH (follicle-stimulating hormone) टेस्ट इसमें यह पता चल जाता है कि महिता के गर्भधारण की समर्थता (क्षमता) कितने प्रतिशत है।
  3. AMH (Anti Mullerian Hormone)  टेस्ट के द्वारा एएमएच की मात्रा के बारे में पता लगाया जा सकता है। यह महिला के अंडाशय में अंडों की उपस्थिति के बारें में दर्शाता है यदि अंडे कम मात्रा में होते है तो उन्हें यह Low AMH के रुप में संकेत करता है। 
  4. एचएसजी टेस्ट के द्वारा महिला की फैलोपियन ट्यूब की समस्या के बारे में पता लग जाता है, कि वह खुली है या फिर अवरोध है। 
  5. Laparoscopy Test जब सामान्य टेस्ट या जाँचों में स्थिति का ठीक से पता नही चल पता है तो ऐसे में लेप्रोस्कोपी टेस्ट (Laparoscopy) का सहारा लेना पड़ सकता है।

इन सभी टेस्ट एवं जाँचों के अलावा में बहुत सारी जाचें हैं जिसकी मदद से डॉक्टर महिला निःसंतानता के बारे में पता करके उसका निदान करते है। 

महिलाओं की निःसंतानता की जाँज की लगात अलग-अलग लैब सेंटरों में भिन्न-भिन्न हो सकती है। महिला निःसंतानता की औषत जाँच की कीमत लगभग ₹ 4000 से ₹ 6000 के बीच हो सकती है। 

महिलाओं को निःसंतानता के निदान और उपचार के लिए महिला निःसंतानता विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लेना चाहिए। महिला निःसंतानता उपचार के लिए आयुर्वेदिक दृष्टिकोण शरीर की आत्म चिकित्सा और संतुलन तंत्र को मजबूत करने पर आधारित है। 

 

महिला बांझपन के इलाज की लागत

निःसंतानता के इलाज की लगात की बात करें तो ऐलोपेथी अर्थात आइवीएफ  में बांझपन के इलाज की कीमत 2 लाख से लेकर 3 लाख के बीच हो सकती है और इसके सफल होने की संभावना बहुत कम अर्थात 10 से 20 प्रतिशत के ही बीच होती है । 

आयुर्वेद के द्वारा निःसंतानता के इलाज की लगात बहुत ही कम एवं पूरी तरह से साइड इफैक्ट फ्री होता है तथा इसकी सफलता दर 90 प्रतिशत से ऊपर की है। 

इसका न्यूनतम खर्च 5500 या इससे भी कम हो सकता है। आयुर्वेद में ऐसी हर्बल दवाओं एवं प्राचीन जड़ी बुटियों के प्रयोग से निःसंतान का उपचार किया जाता है जिसके कारण इसकी कीमत बहुत ही कम हो जाती है। 

 

महिला बांझपन का इलाज – Mahila Banjhpan Ka Ayurvedic Upchar in Hindi

प्राचीन आयुर्वेद में देव चिकित्सा-युक्ति चिकित्सा का वर्णन देखने को मिलता है जिसके आधार पर आशा आयुर्वेदा केन्द्र में इन पद्धतियों को अपनाकर निःसंतानका का इलाज किया जाता है जिसके परिणाम स्वरुप बहुत ही कम समय में गर्भधारण की संभावना बन जाती है। 

आयुर्वेद के अनुसार गर्भधारण को चार भावों में विभाजित किया गाय  है।

  1. गर्भधारण के प्रथम भाव को “ऋतु” कहा जाता है जिसका तात्यपर्य महिला की ऋतु अर्थात ओव्यूलेश से है। 
  2. गर्भधारण के द्वतीय भाव को “क्षेत्र” अर्थात महिला का गर्भाशय या reproductive area को कहा जाता है। 
  3. गर्भधारण के तीसरे भाव को “अम्बू” कहा  जाता है। अम्बू का कार्य होता है कि महिला के गर्भाश्य में पल रहे गर्भ का पोषण करना । 
  4. गर्भधारण के अंतिम और चौथे भाव का नाम बीज है। इस भाव में पुरुष बीज (शुद्ध शुक्र जिसे स्पर्म कहते है) और स्त्री बीज ( शुद्ध आवर्त जिसे एग कहते है) 

आयुर्वेद के अनुशरण के अनुसार “आधुनिक स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ नरेन्द्र राठी ” कहते  है जब यह चारों घटक प्राकृतिक रुप से आपस में एक साथ एकात्रित होकर मिलते है तो गर्भोत्पत्ति की शत-प्रतिशत संभावना बन जाती है। 

आयुर्वेद से पायें स्वस्थ, गुणवान एवं संस्कारवान संतान – 

यदि आपकी भी चाहत एक ऐसी संतान की है जो ओजस्वी, प्रतापी,शक्तिशाली, एवं गुणवान-रुपवान हो तो आपको आयुर्वेद के द्वारा बतायें गये नियमों एवं उपचारों का पूरी तरह से पालन करना चाहिए। 

गर्भाधान नियम के अनुसार यदि आप गर्भ की विकसित अवस्था के दौरान आयुर्वदे के छः भाव अर्थात मातृज, पितृज, आत्मज, रसज, सात्म्यज और सत्वज इन सभी भावों का स्त्री और पुरुष दोनों ठीक प्रकार से पालन करते है। तो आपकी संतान बिल्कुल आपके ही अनुरुप जन्म लेगी अर्थात आप जैसी संतान चाहते है वैसी ही संतान आपको प्राप्त होगी। 

 

महिलाओं में निःसंतानता के लिए आयुर्वेदिक दवाएं –  

आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग होने वाली कुछ हर्बल जड़ी बुटिया एवं दवाएं है जिनका प्रयोग निःसंतानता के उपचार में किया है। उनके नाम कुछ इस प्रकार से है।  

  1. चंद्रप्रभा वटी,
  2.  योगराज गुग्गुलु, 
  3. अशोकारिष्ट, 
  4. कनचनर गुग्गुलु, 
  5. किशोर गुग्गुलु, 
  6. त्रिफला गुग्गुलु, 
  7. शतावरी, 
  8. जीवनवती, 
  9. दशमूल,
  10.  गुडुची, 
  11. पुर्नवा, 
  12. गोकक्षुरा आदि। 

नोट – इन सभी आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन किसी अच्छे आयुर्वेदिक चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही लेना चाहिए। 

महिला निःसंतानता में क्या खायें और क्या नही – 

  1. अनूकूल और प्रतिकूल खाद्य पदार्थ निःसंतानता के इलाज और रोकथाम में आहार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  2.  उड़द की दाल के सेवन ‘शुक्राणु’ की संख्या में वृद्धि करता है साथ ही उनकी कैपेसिटी भी बढ़ता है । 
  3. गुड़ और काले तिल के बीज हार्मोन को संतुलित करते हैं। आहार में ट्रांस वसा (Trans Vasa) शामिल नहीं होना चाहिए क्योंकि वे चैनलों को अवरुद्ध करते हैं और प्रजनन क्षमता में अवरोधक सिद्ध होतें हैं ।
  4.  इसके अलावा पालक, बीन्स, टमाटर जैसे खाद्य पदार्थ महिलाओं में प्रजनन क्षमता को बढ़ाने का काम करतें हैं। 
  5. Preservatives (डिब्बों में बंद खाद्य पदार्थ) और रसायनों वाले खाद्य पदार्थों का जितना हो सके परहेज आवश्यक है।
  6.  अधिक शराब और कैफीन, तंबाकू, सोडा, धूम्रपान, रेड मीट, refined कार्बोहाइड्रेट Reproduction क्षमता को प्रभावित करते हैं। 
  7. अपने आहार में भोजन की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल करना महत्वपूर्ण माना गया है। 
  8. आयुर्वेद में नियमित और संतुलित भोजन करने को बढ़ावा दिया गया है। 
  9. आयुर्वेदिक डॉक्टरो के अनुसार अपने भोजन में रोज नए फलों और सब्जियों को शामिल करने की सलाह दी जाती है न की एक ही प्रकार के भोजन से चिपके रहने की। 

 

महिला निःसंतानता के आयुर्वेदिक उपाय – ( Mahila Nishantanta Ka Ayurvedic Upay)

निःसंतानता के उपचार हेतु काउंसलिंग, डिटॉक्सिफिकेशन थेरेपी ‘पंचकर्म’ इत्यादि को सम्मिलित किया गया है। पंचकर्म के माध्यम से गर्भाशय और अंडाशय के कार्य को बढ़ाना, आयुर्वेद चिकित्सा के माध्यम से गर्भ संस्कार और उससे पूर्व की देखभाल , इसके अतिरिक्त चिकित्सा और हर्बल दवाएं जो की निषेचन की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। इन सभी के सफल कार्यान्वयन हेतु पोषक खाद्य पदर्थाों का सेवन और डाइट प्लान भी महत्वपूर्ण है। आयुर्वेद में महिलाओं के लिए सबसे अच्छे सफल उपचार उपलब्ध हैं और साथ ही यह साइड इफेक्ट्स फ्री और लगात भी कम है। जिससे वर्तमान समय में आयुर्वेदिक पद्धति को मुख्य रूप से अपनाया जा रहा है।

महिला बांझपन के लिए सबसे अच्छा विकल्प क्या है?

आयुर्वेदा के द्वारा महिलाओं की निःसंतानता का इलाज आज के युग में एक बहुत ही अच्छे विकल्प के रुप में उभर कर सामने आ रहा है इसलिए महिला निःसंतानता के उपचार के लिए आयुर्वेद एक बेस्ट ट्रीटमेंट है। 

क्या है कुमारकल्पद्रुम औषधि ?क्या इससे संतान प्राप्ति निश्चित हो जाती है ?

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