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गर्भाशय ट्यूबरक्लोसिस

टीबी अर्थात ट्यूबरक्लोसिस महिलाओं से गर्भाशय को क्षति पहुँचा सकती है। इसके बारे में जानते है कि यूट्रस की टीबी क्या होती है तथा आयुर्वेदिक उपचार के द्वारा कैसे इसका बचाव कर सकते है। 

टीबी की बीमारी के बारे में ज्यादातर लोगों को यही पता होता है कि यह केवल फेफड़ों को प्रभावित करती है परंतु ऐसा नही है। टीबी की बीमारी दिमाग और महिलाओं के जननांगों में भी हो सकती है। टीबी एक ऐसा क्षय रोग है जिसके द्वारा प्रतिवर्ष हमारे देश में लाखों लोग इस बीमारी से प्रभावित होते है। राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) के अनुसार इस बीमारी से लगभग 2 लाख लोग अपनी जान गवां देते है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नाम का एक जीवाणु है जो कि टीबी जैसे रोग को पैदा करता है। आप यदि इस  खतरनाक बीमारी से दूर रहना चाहती है तो इससे संबंधित जानकारी को जरुर जान लेना चाहिए ताकि आप इस टीबी की बीमारी से बच सके। 

टीबी (तपेदिक) विशेष रूप से विकासशील देशों की महिलाओं के लिए एक विश्व व्यापी चिंता का विषय है। महिलाओ में माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु ही महिलाओं के जननांगों  में तपेदिक (टीबी) के लिए जिम्मेदार है।

तपेदिक (टीबी) क्या है (TB kya hai)?

आयुर्वेद में (टीबी) तपेदिक को राजयक्ष्मा रोग से जोड़ कर देखा जा सकता है। जिसमें शरीर के किसी भी अंग में उतकों का क्षरण होने लगता है।

तपेदिक (टीबी) एक विशेष प्रकार के जीवाणु के कारण होता है जिसका नाम माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्यूलोसिस । जो की आम तौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है परंतु महिलाओ के जननांगों में इसका संक्रमण भी आम तौर पर देखने को मिलता है। या यूँ कहे की विश्व भर में कुल 27% मामले इससे संबंधित हैं।

जननांगों की टीबी महिलाओ में पुरानी बीमारी है जिसके लक्षण कम ही दिखते हैं।  जो की मुख्य रूप से फैलोपियन ट्यूब को प्रभावित करती है। साथ ही एंडोमेट्रियम में इसके संक्रमण के साथ प्रभावित फैलोपियन ट्यूब महिलाओं की निःसंतानता का कारण बनती है। महिलाओ के जननांगों में तपेदिक के परिणामस्वरूप डिस्पेर्यूनिया, अनियमित मासिक चक्र, श्रोणि सूजन की बीमारी और अंततः इंफेर्टिलिटी जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है।

वैदिक आयुर्वेदिक पाठ में जननांगों के तपेदिक का कोई प्रत्यक्ष संदर्भ देखने को नहीं मिलता है, लेकिन हरित संहिता के अनुसार निःसंतानता को पांच भागों में विभाजित किया गाया है। 

  1. अनपत्यता (Anapatya )
  2. गर्भस्रावी (Garbhasravi)
  3. मृतावस्था (Mritavasta)
  4. धातुक्षय (Dhatukshaya)
  5. गर्भसमकोच के कारण निःसंतानता  (Infertility due to garbhasamkocha)

धातुक्षय एक ऐसी अवस्था है जब महिला गर्भधारण करने के लिए आवश्यक ऊर्जा एवं सामर्थ्य नही जुटा पाती है। इस स्थिति को महिला प्रजनन प्रणाली में तपेदिक(टीबी) के रूप में माना जा सकता है।

अनपत्यता,धातुक्षय,गर्भसमकोच के कारण महिलाओं का पाचन तंत्र (Metabolism) खराब हो जाता है। जिसके कारण रक्त,ऊतक द्रव, मांसपेशियाँ, वसा और शुक्र धातु का नुकसान होता है। ये सभी ओजोक्षय (प्रतिरक्षा में कमी – immunity loss) को जन्म देते हैं।

फैपोलियन ट्यूब में टीवी के कारण (गर्भाशय में टीबी के  कारण-TB ke karan) –

फैलोपियन ट्यूब में संक्रमण जिसे ट्यूबल संक्रमण भी कहा जाता है। यह एक विशेष प्रकार के जीवाणु के संक्रमण के कारण होता है जो निम्न कारणों से हो सकता है –

  1. स्ट्रैपटोकोकस (Streptococcus)
  2. स्टेफिलोकोकस(Staphylococcus )
  3. माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस (Mycobacterium tuberculosis )
  4. माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma)
  5. क्लैमाइडिया और गोनोरिया जैसे यौन रोग (Sexually transmitted diseases such as chlamydia, gonorrhea)

फैलोपियन ट्यूब में संक्रमण से ट्यूबल ब्लॉकेज और अंडाशय में तरल पदार्थ या मवाद जमा हो जाता है। इसी कारण गर्भधारण करने में समस्या आती है और यही कारण निःसंतानता को जन्म देता है।

फैलोपियन ट्यूब में संक्रमण के लक्षण – (महिलाओं में टीबी के लक्षण – uterus ki tb ke lakshan )

फ्लोपियन ट्यूब में संक्रमण के यह मुख्य कारण है जिनका ठीक समय पर उपचार किया जायें तो यह पूरी तरह से ठीक हो जाते है। 

  1. बुखार और तेज़ सिरदर्द के साथ थकान महसूस होना।
  2. मरीज़ को पेशाब से संबंधित समस्या हो सकती है।
  3. संभोग के दौरान दर्द
  4. योनि स्राव के साथ-साथ आमतौर पर एक अजीब रंग और गंध युक्त तरल पदार्थ का निकलता है। 
  5. माहवारी के दौरान अत्यधिक पीड़ा होना। 
  6. पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना इत्यादि। 

महिला जननांगों में टीबी – 

महिला जननांगों में टीबी (तपेदिक) एक आम समस्या है। आंकड़ों के आधार पर कहा जाता है कि भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा टीबी के मरीज़ है और यह समस्या वयस्क महिलाओ में अधिक देखने को मिलती है। एक शोध के अनुसार दुनियाभर में 80 से 90 फीसदी तक टीबी की बीमारी 20 से 40 वर्ष की उम्र की महिलाओं में देखने को मिलती है। जननांग टीबी में एंडोमेट्रियम (endometrium) एक मुख्य कारण माना जाता है।

गर्भाशय टीबी का निदान कैसे किया जाता है – (uterus tb ki jaach)

महिला जननांग टीबी  (तपेदिक) का उपचार एवं निदान आम तौर पर देरी से होता है क्योंकि इसके लक्षण अंगों के प्रभावित होने के बाद दिखाई देते हैं। गर्भाशय की टीबी का पता लगाने के लिए ट्यूबरकुलीन नामक एक स्किन टेस्ट होता है जिसमें टीबी के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसे टेस्ट है जिनके आधार पर डॉक्टर महिलाओं के गर्भाशय में होने वाले क्षय लोग का पता लगा सकते है। 

  1. पैल्विक अल्ट्रासाउंड टेस्ट से महिलाओं के गर्भाशय तथा अंडाशय की संरचना की जाँच की जाती है। 
  2. Cervical Screening Test से योनि मार्ग एवं गर्भाशय की जानकारी प्राप्त हो जाती है। 
  3. Reproductive laparoscopy टेस्ट से महिला के पेट एवं उसके प्रजनन अंगों की जाँच की जाती है। इस प्रक्रिया का उपयोग महिलाओं में होने वाले जटिल रोगों के निदान और बायोप्सी करने के लिए किया जाता है। 
  4. Endoscopy test इस तकनीकी के माध्यम से शरीर के सामान्य संक्रमण जैसे अल्सर तथा कैंसर के शुरुवाती लक्षणों की जानकारी प्राप्त होती है। 

इसके अतिरिक्त गर्भाशय की टीबी के उपचार हेतू  कुछ और uterus tb test  उपलब्ध हैं जोकि इस प्रकार से है –

  1. Culture methods
  2. Acid-fast bacilli staining
  3. Immunological tests 
  4. Molecular tests
  5. Imaging methods
  6. Endoscopy

जाने कैसे इन्फर्टिलिटी का कारण बन सकता है Uterus TB – 

फैलोपियन ट्यूब शुक्राणु और अंडे के लिए एक मार्ग है। इसमें कोई भी रुकावट महिलाओ में निःसंतानता का कारण बनती है। फैलोपियन ट्यूब संक्रमण नलियों में रुकावट का कारण बनता है।

फैलोपियन ट्यूब संक्रमण का उपचार इसकी गंभीरता पर निर्भर करता है। डॉक्टर क्षतिग्रस्त भाग को हटाने के लिए क्रमशः लैप्रोस्कोपिक सर्जरी और फैलोपियन ट्यूब संक्रमण सर्जरी की सलाह देते हैं।

गर्भाशय में टीबी (तपेदिक) आम तौर पर छिपा हुआ होता है और इसका इलाज भी अंतिम स्टेज पर ही किया जा सकता है। जब वह अंगों को क्षति पहुंचा चुका होता है। आशा आयुर्वेदा की निःसंतानता विशेषज्ञ डॉ चंचल शर्मा के अनुसार कई मामलों में पाया गया है कि टीबी भी निःसंतानता का एक महत्वपूर्ण कारक है। जो की प्रमुख रूप से उभर कर सामने आ रहा है। गर्भाशय की टीबी महिलाओं की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर रहा है।  टीबी के कारण ट्यूबल बाधा अपरिवर्तनीय है। यदि प्रारंभिक चरण में निदान किया जाता है तो संक्रमण को रोका जा सकता है और गर्भाशय,फैलोपियन ट्यूब को नुकसान से बचाया जा सकता है।

अब जहाँ तक आशा आयुर्वेद में इसके निदान के संबंध में बात आती है तो एक बार एक केस हमें देखने को मिला था जिसमे एक महिला जो की लगभग 30 वर्ष की रही होगी उसकी दोनों ट्यूब ब्लॉक होने के बावजूद वो गर्भधारण की इच्छा लेकर हमारे पास आई थी। उसने यहाँ आने से पहले दुनिया भर के टेस्ट और ट्रीटमेंट करवाए थे, जिससे की वो माँ बन सके। इन सभी उपचार के बाद वह टीबी से ग्रसित पहले से ही थी । इस प्रकार के टीबी का उपचार करना बहुत मुश्किल हो जाता। क्योंकि या तो लक्षण विविध होते हैं या कोई लक्षण दिखाई ही नही देते हैं। इसलिए हमें मालूम हैं कि एक महिला के लिए छिपे हुए ट्यूबरक्यूलोसिस  के कारण गर्भवती होना कितना कठिन हो जाता है। परंतु आशा आयुर्वेदा की कोशिश रंग लाई डॉ चंचल शर्मा ने इस महिला का आयुर्वेदिक उपचार शुरु किया। कुछ दिनों के बाद उस महिला को आराम मिलना शुरु हुआ और अंततः उसे आयुर्वेदिक दवाओं से सेवन से इस बीमारी से छुटकारा मिल गया। और वह गर्भधारण कर सकी। 

गर्भाशय की टीबी के निदान हेतू आवश्यक आयुर्वेदिक दवाइयाँ और उपचार (गर्भाशय संक्रमण का उपचार)

  1. टीबी के आयुर्वेदिक उपचार में गिलोय,शतावरी,अर्जुन, अश्वगंधा,बाला,दशमूल,वासा, अमलकी, हरितकी आदि जड़ी बूटियाँ उपयोग में लाई जाती है। 
  2. हर्बल दवाइयाँ एवं चूर्ण जैसे च्यवनप्राश, सितोपलादि चूरन, वर्धमान पिप्पली रसायण, द्वादशी अवलेह, तालशादी चूरन, चगलायदी घृत, फल खरिता आदि और बाह्य अनुप्रयोग के लिए चंदनादि तेल आदि। 
  3. कैफीन, सफेद ब्रेड, संरक्षित खाद्य पदार्थ, ठंडे, मीठे और नमकीन खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।
  4. आयुर्वेद में पंचकर्म एक विषहरण चिकित्सा के रूप में सामने आता है। जो शरीर के भीतर मेटाबोलिज़्म की क्रिया को मजबूत करता है। यह दवाओं के प्रभाव को बढ़ाने के काम आता है और रोग से बचाव में सुचारु रूप से काम करता है।

गर्भाशय की टीबी  का आयुर्वेदिक उपचार – (TB ke Ayurvedic Upchar)

फैलोपियन ट्यूब में टीबी संक्रमण से ट्यूबल ब्लॉकेज होता है जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं में निःसंतानता उत्पन्न होती है। आयुर्वेदिक उपचार ट्यूब या अंडाशय की तुलना में प्रजनन प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करता है। आर्तव स्त्रोत (Artavaha srotasa) संपूर्ण महिला प्रजनन पथ को कवर करता है। वात दोष शरीर के चैनलों में किसी भी प्रकार की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार है। इसमें कोई भी पैथोलॉजिकल रुकावट चैनलों को संकीर्ण बना देती है। इस तरह की रुकावटे शुक्राणु और अंडे के मिलने में बाधा डालती हैं।

उत्तर बस्ती पंचकर्म चिकित्सा का ही एक भाग है। जो की कुछ संक्रमणों के कारण फैलोपियन ट्यूब की रुकावट के इलाज के लिए सबसे प्रभावी और दर्द रहित प्रक्रिया है। इसमे औषधीय तरल आयुर्वेदिक दवा को मूत्रमार्ग या योनि मार्ग के माध्यम से प्रविष्ठ किया जाता है।

अगर मुझे गर्भाशय की टीबी है तो क्या मैं गर्भवती हो सकती हूं 

यदि टीबी का इलाज चल रहा हो तो ऐसे में सलाह ये दी जाती है कि महिला गर्भधारण न करे । ऐसे में महिला गर्भधारण कर सकती है यदि फैलोपियन ट्यूब को किसी प्रकार की क्षति न पहुंची हो तो। हालांकि गर्भावस्था में प्रगति के साथ उपचार में कुछ जटिलताएँ सामने आने लगती हैं।

गर्भावस्था में टीबी का प्रभाव रोग की गंभीरता, अतिरिक्त प्रसार, निदान के समय गर्भावस्था की प्रगति, किसी भी संक्रमण और उपचार जैसे कारको से प्रभावित हो सकता है। गर्भाशय में टीबी विशेष रूप से विकासशील देशों की महिला में निःसंतानता का सबसे बड़ा कारक है। गर्भावस्था के दौरान टीबी बहुत चुनौती पूर्ण हो सकता है। 

क्या गर्भाशय की टीबी निःसंतानता को जन्म देती है?

गर्भाशय में टीबी जननांग टीबी का ही हिस्सा है जो की प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुँचाती है। जननांग टीबी अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब, गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा और योनि को प्रभावित करती है। यह रक्त या लसीका के माध्यम से फैल सकती है। इस प्रकार यौन संपर्क से जननांग तपेदिक फैलता है।

क्या टीबी उपचार के बाद प्राकृतिक गर्भावस्था धारण की जा सकती है?

प्राकृतिक गर्भावस्था टीबी संक्रमण द्वारा किए गए नुकसान पर निर्भर करती है। ऐसे मामले हैं जब टीबी किसी भी अंग को नुकसान नहीं पहुँचाता है तो महिला गर्भ धारण कर सकती है।

प्रारंभिक उपचार के साथ जननांग टीबी को बहुत जटिलताओं के साथ आसानी से ठीक किया जा सकता है। परंतु आधे अधूरे ट्रीटमेंट से गंभीर जटिलताएँ पुनः हो सकती हैं जिनमें मवाद, निःसंतानता और अस्थानिक गर्भावस्था इत्यादि होने की संभावना बन जाती है।

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